Tuesday 3 April 2012

भारत की स्वतंत्रता के बाद राजस्थान का एकीकरण

राजस्थान भारत का एक महत्वपूर्ण प्रांत है। यह 30 मार्च 1949 को भारत का एक ऐसा प्रांत बना, जिसमें तत्कालीन राजपूताना की ताकतवर रियासतें विलीन हुईं । भरतपुर के जाट शासक ने भी अपनी रियासत के विलय राजस्थान में किया था। राजस्थान शब्द का अर्थ है: 'राजाओं का स्थान' क्योंकि यहां गुर्जर, राजपूत, मौर्य, जाट आदि ने पहले राज किया था। भारत के संवैधानिक-इतिहास में राजस्थान का निर्माण एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी । ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत को आजाद करने की घोषणा करने के बाद जब सत्ता-हस्तांतरण की कार्यवाही शुरू की, तभी लग गया था कि आजाद भारत का राजस्थान प्रांत बनना और राजपूताना के तत्कालीन हिस्से का भारत में विलय एक दूभर कार्य साबित हो सकता है। आजादी की घोषणा के साथ ही राजपूताना के देशी रियासतों के मुखियाओं में स्वतंत्र राज्य में भी अपनी सत्ता बरकरार रखने की होड़ सी मच गयी थी, उस समय वर्तमान राजस्थान की भौगालिक स्थिति के नजरिये से देखें तो राजपूताना के इस भूभाग में कुल बाईस देशी रियासतें थी। इनमें एक रियासत अजमेर मेरवाडा प्रांत को छोड़ कर शेष देशी रियासतों पर देशी राजा महाराजाओं का ही राज था। अजमेर-मेरवाडा प्रांत पर ब्रिटिश शासकों का कब्जा था; इस कारण यह तो सीघे ही स्वतंत्र भारत में आ जाती, मगर शेष इक्कीस रियासतों का विलय होना यानि एकीकरण कर 'राजस्थान' नामक प्रांत बनाया जाना था। सत्ता की होड़ के चलते यह बडा ही दूभर लग रहा था क्योंकि इन देशी रियासतों के शासक अपनी रियासतों के स्वतंत्र भारत में विलय को दूसरी प्राथमिकता के रूप में देख रहे थे। उनकी मांग थी कि वे सालों से खुद अपने राज्यों का शासन चलाते आ रहे हैं, उन्हें इसका दीर्घकालीन अनुभव है, इस कारण उनकी रियासत को 'स्वतंत्र राज्य' का दर्जा दे दिया जाए । करीब एक दशक की ऊहापोह के बीच 18 मार्च 1948 को शुरू हुई राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया कुल सात चरणों में एक नवंबर 1956 को पूरी हुई । इसमें भारत सरकार के तत्कालीन देशी रियासत और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वी. पी. मेनन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी । इनकी सूझबूझ से ही राजस्थान के वर्तमान स्वरुप का निर्माण हो सका।

पहला चरण- 18 मार्च 1948

सबसे पहले अलवर , भरतपुर, धौलपुर, व करौली नामक देशी रियासतों का विलय कर तत्कालीन भारत सरकार ने फरवरी 1948 मे अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर 'मत्स्य यूनियन' के नाम से पहला संघ बनाया। यह राजस्थान के निर्माण की दिशा में पहला कदम था। इनमें अलवर व भरतपुर पर आरोप था कि उनके शासक राष्टृविरोधी गतिविधियों में लिप्त थे। इस कारण सबसे पहले उनके राज करने के अधिकार छीन लिए गए व उनकी रियासत का कामकाज देखने के लिए प्रशासक नियुक्त कर दिया गया। इसी की वजह से राजस्थान के एकीकरण की दिशा में पहला संघ बन पाया । यदि प्रशासक न होते और राजकाज का काम पहले की तरह राजा ही देखते तो इनका विलय असंभव था क्योंकि इन राज्यों के राजा विलय का विरोध कर रहे थे। 18 मार्च 1948 को मत्स्य संघ का उद़घाटन हुआ और धौलपुर के तत्कालीन महाराजा उदयसिंह को इसका राजप्रमुख मनाया गया। इसकी राजधानी अलवर रखी गयी थी। मत्स्य संघ नामक इस नए राज्य का क्षेत्रफल करीब तीस हजार किलोमीटर था, जनसंख्या लगभग 19 लाख और सालाना-आय एक करोड 83 लाख रूपए थी। जब मत्स्य संघ बनाया गया तभी विलय-पत्र में लिख दिया गया कि बाद में इस संघ का 'राजस्थान' में विलय कर दिया जाएगा।

दूसरा चरण 25 मार्च 1948

राजस्थान के एकीकरण का दूसरा चरण पच्चीस मार्च 1948 को स्वतंत्र देशी रियासतों कोटा, बूंदी, झालावाड, टौंक, डूंगरपुर, बांसवाडा, प्रतापगढ , किशनगढ और शाहपुरा को मिलाकर बने राजस्थान संघ के बाद पूरा हुआ। राजस्थान संघ में विलय हुई रियासतों में कोटा बड़ी रियासत थी, इस कारण इसके तत्कालीन महाराजा महाराव भीमसिंह को राजप्रमुख बनाया गया। bundi के तत्कालीन महाराव बहादुर सिंह राजस्थान संघ के राजप्रमुख भीमसिंह के बडे भाई थे, इस कारण उन्हें यह बात अखरी कि छोटे भाई की 'राजप्रमुखता' में वे काम कर रहे है। इस ईर्ष्या की परिणति तीसरे चरण के रूप में सामने आयी।

तीसरा चरण 18 अप्रैल 1948

बूंदी के महाराव बहादुर सिंह नहीं चाहते थें कि उन्हें अपने छोटे भाई महाराव भीमसिंह की राजप्रमुखता में काम करना पडे, मगर बडे राज्य की वजह से भीमसिंह को राजप्रमुख बनाना तत्कालीन भारत सरकार की मजबूरी थी। जब बात नहीं बनी तो बूंदी के महाराव बहादुर सिंह ने उदयपुर रियासत को पटाया और राजस्थान संघ में विलय के लिए राजी कर लिया। इसके पीछे मंशा यह थी कि बडी रियासत होने के कारण उदयपुर के महाराणा को राजप्रमुख बनाया जाएगा और बूंदी के महाराव बहादुर सिंह अपने छोटे भाई महाराव भीम सिंह के अधीन रहने की मजबूरी से बच जाएगे और इतिहास के पन्नों में यह दर्ज होने से बच जाएगा कि छोटे भाई के राज में बडे भाई ने काम किया। अठारह अप्रेल 1948 को राजस्थान के एकीकरण के तीसरे चरण में उदयपुर रियासत का राजस्थान संघ में विलय हुआ और इसका नया नाम हुआ 'संयुक्त राजस्थान संघ'। माणिक्य लाल वर्मा के नेतृत्व में बने इसके मंत्रिमंडल में उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह को राजप्रमुख बनाया गया, कोटा के महाराव भीमसिंह को वरिष्ठ उपराजप्रमुख बनाया गया। और कुछ इस तरह बूंदी के महाराजा की चाल भी सफल हो गयी।

चौथा चरण तीस मार्च 1949


इससे पहले बने संयुक्त राजस्थान संघ के निर्माण के बाद तत्कालीन भारत सरकार ने अपना ध्यान देशी रियासतों जोधपुर , जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर पर केन्द्रित किया और इसमें सफलता भी हाथ लगी और इन चारों रियासतो का विलय करवाकर तत्कालीन भारत सरकार ने तीस मार्च 1949 को वृहत्तर राजस्थान संघ का निर्माण किया, जिसका उदघाटन भारत सरकार के तत्कालीन रियासती और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया। यही ३० मार्च आज राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है। इस कारण इस दिन को हर साल राजस्थान दिवस के रूप में मनाया जाता है। हालांकि अभी तक चार देशी रियासतो का विलय होना बाकी था, मगर इस विलय को इतना महत्व नहीं दिया जाता, क्योंकि जो रियासते बची थी वे पहले चरण में ही 'मत्स्य संघ' के नाम से स्वतंत्र भारत में विलय हो चुकी थी। अलवर , भतरपुर, धौलपुर व करौली नामक इन रियासतो पर भारत सरकार का ही आधिपत्य था इस कारण इनके राजस्थान में विलय की तो मात्र औपचारिकता ही होनी थी।

पांचवा चरण 15 अप्रेल 1949

पन्द्रह अप्रेल 1949 को मत्स्य संध का विलय ग्रेटर राजस्थान में करने की औपचारिकता भी भारत सरकार ने निभा दी। भारत सरकार ने 18 मार्च 1948 को जब मत्स्य संघ बनाया था तभी विलय पत्र में लिख दिया गया था कि बाद में इस संघ का राजस्थान में विलय कर दिया जाएगा। इस कारण भी यह चरण औपचारिकता मात्र माना गया।

छठा चरण 26 जनवरी 1950

भारत का संविधान लागू होने के दिन 26 जनवरी 1950 को सिरोही रियासत का भी विलय ग्रेटर राजस्थान में कर दिया गया। इस विलय को भी औपचारिकता माना जाता है क्योंकि यहां भी भारत सरकार का नियंत्रण पहले से ही था। दरअसल जब राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया चल रही थी, तब सिरोही रियासत के शासक नाबालिग थे। इस कारण सिरोही रियासत का कामकाज दोवागढ की महारानी की अध्यक्षता में एजेंसी कौंसिल ही देख रही थी जिसका गठन भारत की सत्ता हस्तांतरण के लिए किया गया था। सिरोही रियासत के एक हिस्से आबू देलवाडा को लेकर विवाद के कारण इस चरण में आबू देलवाडा तहसील को बंबई और शेष रियासत विलय राजस्थान में किया गया।

सांतवा चरण एक नवंबर 1956

अब तक अलग चल रहे आबू देलवाडा तहसील को राजस्थान के लोग खोना नही चाहते थे, क्योंकि इसी तहसील में राजस्थान का कश्मीर कहा जाने वाला आबूपर्वत भी आता था , दूसरे राजस्थानी, बच चुके सिरोही वासियों के रिश्तेदार और कईयों की तो जमीन भी दूसरे राज्य में जा चुकी थी। आंदोलन हो रहे थे, आंदोलन कारियों के जायज कारण को भारत सरकार को मानना पडा और आबू देलवाडा तहसील का भी राजस्थान में विलय कर दिया गया। इस चरण में कुछ भाग इधर उधर कर भौगोलिक और सामाजिक त्रुटि भी सुधारी गया। इसके तहत मध्यप्रदेश में शामिल हो चुके सुनेल थापा क्षेत्र को राजस्थान में मिलाया गया और झालावाड जिले के उप जिला सिरनौज को मध्यप्रदेश को दे दिया गया।

इसी के साथ आज से राजस्थान का निर्माण या एकीकरण पूरा हुआ। जो राजस्थान के इतिहास का एक अति महत्ती कार्य था

राजस्थान की समय रेखा

  •     ५००० ई. पू.: कालीवंग सभ्यता
  •     ३५०० ई. पू. आहड़ सभ्यता
  •     १००० ई.पू.-६०० ई. पू. आर्य सभ्यता
  •     ३०० ई. पू. - ६०० ई. जनपद युग
  •     ३५० - ६०० गुप्त वंश का हस्तक्षेप
     - ६वीं शताब्दी व ७वीं शताब्दी हूणों के आक्रमण, हूणों व गुर्जरों द्वारा राज्यों की स्थापना - हर्षवर्धन का हस्तक्षेप
  •     ७२८ बाप्पा रावल द्वारा चितौड़ में मेवाड़ राज्य की स्थापना
  •     ९६७ कछवाहा वंश घोलाराय द्वारा आमेर राज्य की स्थापना
  •     १०१८ महमूद गजनवी द्वारा प्रतिहार राज्य पर आक्रमण तथा विजय
  •     १०३१ दिलवाड़ा में विंमल शाह द्वारा आदिनाथ मंदिर का निर्माण
  •     १११३ अजयराज द्वारा अजमेर (अजयमेरु) की स्थापना
  •     ११३७ कछवाहा वंश के दुलहराय द्वारा ढूँढ़ार राज्य की स्थापना
  •     ११५६ महारावल जैसलसिंह द्वारा जैसलमेर की स्थापना
  •     ११९१ मुहम्मद गोरी व पृथ्वीराज चौहान के मध्य तराइन का प्रथम युद्ध - मुहम्मद गोरी की पराजय
  •     ११९२ मुहम्मद गोरी व पृथ्वीराज चौहान के मध्य तराइन का द्वितीय युद्ध -- पृथ्वीराज की पराजय
  •     ११९५ मुहम्मद गौरी द्वारा बयाना पर आक्रमण
  •     १२१३ मेवाड़ के सिंहासन पर जैत्रसिहं का बैठना
  •     १२३० दिलवाड़ में तेजपाल व वस्तुपाल द्वारा नेमिनाथ मंदिर का निर्माण
  •     १२३४ रावल जैत्रसिंह द्वारा इल्तुतमिश पर विजय
  •     १२३७ रावल जैत्रसिंह द्वारा सुल्तान बलवन पर विजय
  •     १२४२ बूँदी राज्य की हाड़ा राज देशराज द्वारा स्थापना
  •     १२९० हम्मीर द्वारा जलालुद्दीन का आक्रमण विफल करना
  •     १३०१ हम्मीर द्वारा अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण को विफल करना, षड़यन्त्र द्वारा पराजित रणथम्मौर के किले पर ११ जुलाई को तुर्की का आधिकार स्थापित
  •     १३०२ रत्नसिंह गुहिलों के सिहासन पर आरुढ़
  •     १३०३ अलाउद्दीन खिलजी द्वारा राणा रत्नसिंह पराजित, पद्मिनी का जौहर, चितौड़ पर खिलजी का अधिकार, चितौड़ का नाम बदलकर खिज्राबाद
  •     १३०८ कान्हडदेव चौहान खिलजी से पराजित, जालौर का खिलजी पर अधिकार
  •     १३२६ राणा हमीर द्वारा चितौड़ पर पुन: अधिकार
  •     १४३३ कुम्भा मेवाड़ के सिंहासन पर आरुढ़
  •     १४४० महाराणा कुम्भा द्वारा चितौड़ में विजय स्तम्भ का निर्माण
  •     १४५६ महाराणा कुम्मा द्वारा मालवा के शासन महमूद खिलजी को परास्त करना, कुम्भा का शम्स खाँ को हराकर नागौर पर कब्जा
  •     १४५७ गुजरात व मालवा का मेवाड़ के विरुद्ध संयुक्त अभियान करना
  •     १४५९ राव जोधा द्वारा जोधपुर की स्थापना
  •     १४६५ राव बीका द्वारा बीकानेर राज्य की स्थापना
  •     १४८८ बीकानेर नगर का निर्माण पूर्ण
  •     १५०९ राणा संग्रामसिंह मेवाड़ के शासक बने
  •     १५१८ महाराणा जगमल सिंह द्वारा बाँसवाड़ राज्य की स्थापना
  •     १५२७ राणा संग्राम सिंह का बयाना पर अधिकार तथा बाबर के हाथों पराजय
  •     १५२८ राणा सांगा का निधन
  •     १५३२ राजा मालदेव द्वारा अपने पिता राव गंगा की हत्या पर मारवाड़ की सत्ता पर कब्जा
  •     १५३८ मालदेव का सिवाना व जालौर पर अधिपत्य
  •     १५४१ राजा मालदेव द्वारा हुमायू को निमंत्रण देना
  •     १५४२ राजा मालदेव का बीकानेर नरेश जैत्रसिंह को परास्त करना, जैत्रसिंह की मृत्यु, हुमायूँ का मारवाड़ सीमा मे प्रवेश
  •     १५४४ राजा मालदेव व शेरशह के मध्य जैतारण (सामेल) का युद्ध, मालदेव की पराजय
  •     १५४७ भारमल आमेर का शासक बना
  •     १५५९ राजा उदयसिंह द्वारा उदयपुर नगर की स्थापना
  •     १५६२ राजा मालदेव का निधन, मालदेव का तृतीय पुत्र राव चन्द्रसेन मारवाड़ के सिंहासन पर आरुढ
  •     १५६२ आमेर के राजा भारमल ने अपनी पुत्री का विवाह सांभर से सम्पन्न कराया
  •     १५६४ राव चन्द्रसेन की पराजय, जोधपुर मुगलों के अधीन
  •     १५६९ रणथम्भौर नरेश सुर्जन हाडा की राजा मानसिंह से सन्धि, हाड़ पराजित
  •     १५७२ राणा उदयसिंह की मृत्यु, महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक
  •     १५७२ अकबर द्वारा रामसिंह को जोधपुर का शासक नियुक्त
  •     १५७३ राजा मानसिंह की महाराणा प्रताप से मुलाकात
  •     १५७४ बीकानेर नरेश कल्याणमल का निधन, रायसिंह का सिंहासनरुढ़ होना।
  •     १५७६ हल्दीघाटी का युद्ध, महाराणा प्रताप की सेना मुगल सेना से पराजित
  •     १५७८ मुगल सेना द्वारा कुम्भलगढ़ पर अधिकार, प्रताप का छप्पन की पहाड़ियों में प्रवेश। चावड़ को राजधानी बनाना
  •     १५८० अकबर के दरबार के नवरत्नों में एक अब्दुल रहीम खानखाना को अकबर द्वारा राजस्थान का सूबेदार नियुक्त करना।
  •     १५८९ आमेर के राजा भारमल की मृत्यु, मानसिंह को सिंहासन मिला
  •     १५९६ राजा किशन सिंह द्वारा किशनगढ़ (अजमेर) की नीवं
  •     १५९७ महाराणा प्रताप की चांवड में मृत्यु
  •     १६०५ सम्राट अकबर ने राजा मानसिंह को ७००० मनसव प्रदान किये।
  •     १६१४ राजा मानसिंह की दक्षिण भारत में मृत्यु
  •     १६१५ राणा अमरसिंह द्वारा मुगलों से सन्धि
  •     १६२१ राजा मिर्जा जयसिंह आमेर का शासक नियुक्त
  •     १६२५ माधोसिंह द्वारा कोटा राज्य की स्थापना
  •     १६६० राजा राजसिंह द्वारा राजसमन्द का निर्माण प्रारम्भ
  •     १६६७ जयसिंह की दक्षिण भारत में मृत्यु
  •     १६९१ राजा राजसिंह द्वारा नाथद्वारा मंदिर का निर्माण
  •     १७२७ सवाई जयसिंह द्वारा जयपुर नगर का स्थापना
  •     १७३३ जयपुर नरेश सवाई जयसिंह का मराठों से पराजित होना
  •     १७७१ कछवाहा वंश के राव प्रतापसिंह ने अलवा राज्य की नींव डाली
  •     १८१८ झाला वंशजों द्वारा झालावाड़ राज्य की स्थापना
  •     १८१८ मेवाड़ के राजपूतों द्वारा ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि
  •     १८३८ माधव सिंह द्वारा झालावाड़ की स्थापना
  •     १८५७ २८ मई को नसीरा बाद में सैनिक विद्रोह
  •     १८८७ राजकीय महाविद्यालय, अजमेर के छात्रों द्वारा कांग्रेस कमिटी का गठन
  •     १९०३ लार्ड कर्जन ने एडवर्ड - सप्तम के राज्यारोहण समारोह में उदयपुर के महाराणा फतेहसिंह को आमंत्रण और महाराणा द्वारा दिल्ली प्रस्थान
  •     १९१८ बिजोलिया किसान आन्दोलन
  •     १९२२ भील आन्दोलन प्रारम्भ
  •     १९३८ मेवाड़, अलवर, भरतपुर, प्रजामंडल गठित, सुभाषचन्द्र बोस की जोधपुर यात्रा
  •     १९४५ ३१ दिसम्बर को अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के अन्तर्गत राजपूताना प्रान्तीय सभा का गठन
  •     १९४७ २७ जून को रियासती विभाग की स्थापना
  •     १९४७ शाहपुरा में गोकुल लाल असावा के नेतृत्व में लोकप्रिय सरकार बनी जो १९४८ में संयुक्त राजस्थान संघ में विलीन हो गई।

Monday 26 March 2012

Rajasthani Castes and communities


Rajasthanis form ethno-linguistic group that is distinct in its language, history, cultural and religious practices, social structure, literature, and art. However, there are many different castes and communities, with diversified traditions of their own. Major sub ethnic groups are Ahirs, Jats, Gurjars, Rajputs, Mali (also known as Saini), Meenas, Bhils, Kalvi, Garasia, Kanjar, etc.

Sahariyas

Sahariyas, the jungle dwellers, is considered as the most backward tribe in Rajasthan. Believed to be of Bhil origin, they inhabit the areas of Kota, Dungarpur and Sawai Madhopur in the southeast of Rajasthan. Their main occupations include working as shifting cultivators, hunters and fishermen.

Garasias Garasias is a small Rajput tribe inhabiting Abu Road area of southern Rajasthan.

Gadiya Lohars

Gadiya Lohars are wandering blacksmiths that are named after their attractive bullock carts called gadis. Initially a martial Rajput tribe, they left their homeland when Emperor Akbar ousted Maharana Pratap from Chittorgarh.

Gurjars are well known people from Rajasthan. Historically, they were rulers and protectors of Gurjaratra (portions of Rajasthan and Gujarat). Some scholars believe, Gurjars guarded the entire Northern and Western India against foreign invasion until the end of tenth century and thus came to known as pratiharas (protectors). Praiseful references can be found in Arab chronicles about administration and might of these Gurjars.

Rajputs are well known warrior people of Rajasthan. Rajputs "are considered to be the best soldiers in India". Rajputs of Rajasthan (historically called Rājpūtāna) hold distinctive identity as opposed to rajputs of other regions of country. This identity is usually described as "proud Rajput tribes of Rājputāna". They traced their lineage from a mythical fire atop Mt. Abu–a mountain in Rajasthan (Agni Kula or the Fire Family), the sun (Suryavanshi or the Sun Family), and the moon (Chandravanshi or the Moon Family). The Sun Family includes Sisodias of Marwar (Chittaur and Udaipur), Rathores of Jodhpur and Bikaner, and Kachwahas of Amber and Jaipur while The Moon family includes Bhattis of Jaisalmer. There is a tradition that in year 747 all Rajput clans were purified by sage Vashishta and admitted to the royal cast of Kshatriya. It is believed that Rajput tribes of Rajasthan were not Indo-Aryans until the purification. They are Scythian descent who might have migrated from the Caucasus in Central Asia towards the Indus Valley.

Jats are among native tribal group of Rajasthan. They are mostly hindus and muslims. Historically, their origin can be traced to tribal groups from the Indo-Scythian period of roughly 200 BC to AD 400. Jangladesh was the name of a region of northern Rajasthan where Jats established their rule.

There are few other tribal communities in Rajasthan, such as Meena and Bhils. The Ghoomar dance is one well-known aspect of Bhil tribe. Meena and Bhils were employed as soldiers by Rajputs for their bravery and martial capabilities. Meenas, in ancient times, were ruler of Matsya, i.e., Rajasthan or Matsya Union. However, during colonial rule, the British government declared 250 groups which included Meenas, Gujars, etc. as "criminal tribes". Any group or community that took arms and opposed British rule were branded as criminal by the British government in 1871. This Act was repealed in 1952 by Government of India.

Rajasthani Brahmins are mostly dadheechs, Shrimalis, Pushkarnas, and Gauds. Some of them are migrants from Kashmir and Punjab while others trace their origin in Gujarat and further south.

There are a few other colourful folks, groups like those of Gadia Luhar, Banjara, Nat, Kalbelia, and Saansi, who criss-cross the countryside with their animals. The Gadia Luhars are said to be once associated with Maharana Pratap.

Rajasthan Legislative Assembly

The Rajasthan Legislative Assembly or the Rajasthan Vidhan Sabha is the unicameral legislature of the Indian state of Rajasthan. It is situated in Jaipur — the capital of the state. Members of the Legislative assembly are directly elected by the people. Presently, the legislative assembly consists of 200 M.L.A.. Its term is 5 years, unless sooner dissolved.
The First Rajasthan Legislative Assembly (1952–57) was inaugurated on 31 March, 1952. It had a strength of 160 members. The strength was increased to 190 after the merger of the erstwhile Ajmer State with Rajasthan in 1956. The Second (1957–62) and Third (1962–67) Legislative Assemblies had a strength of 176. The Fourth (1967–72) and Fifth (1972–77) Legislative Assembly comprised 184 members each. The strength became 200 from the Sixth (1977–1980) Legislative Assembly onwards. The current (Thirteenth) Legislative Assembly began on 1 January, 2009.

List of Speakers of Rajasthan Legislative Assembly

                This is a list of the speaker of the Rajasthan Legislative Assembly.
    No. of Assembly & its Period                    Speaker                                          Period
1 (February 23 1952 - 1957)                    Narottam Lal Joshi         March 31 1952 - April 25 1957

2 (April 2 1957 -March 1 1962)                Ram Niwas Mirdha         April 25 1957 - March 2 1962

3 (March 3 1962- February 28 1967)        Ram Niwas Mirdha         March 3 1962 - May 3 1967

4 (March 1 1967 - March 15 1972)           Niranjan Nath Acharya    May 3 1967 - March 20 1972

5 (March 15 1972 - April 30 1977)            Ram Kishore Vyas         March 20 1972 - July 18 1977

6 (June 22 1977 - February 17 1980)        Laxman Singh               July 18 1977 - June 20 1979

                                                            Gopal Singh                  September 25 1979 - July 7 1980
                                                                                  
7 (June 6 1980 - March 9 1985)               Poonam Chand Vishnoi July 7 1980 - March 20 1985

8 (March 9 - March 1 1990)                     Hira Lal Devpura            March 20 1985 - October 16 1985

                                                            Giriraj Prasad Tiwari      January 31 1986 to November 3 1990   

9 (March 2 1990 - December 15 1992)     Hari Shankar Bhabhra    March 16 1990 - December 1 1993

10 (December 4 1993 - November 30 1998)  Hari Shankar Bhabhra December 30 1993 - October 5 1994

                                                                Shanti Lal Chaplot      April 7 1995 - March 18 1998 

                                                                Samrath Lal Meena    July 24 1998 - January 4 1999  


11 (December 1 1998 - December 4 2003)    Parasram Maderna         January 6 1999 - January 15 2004

12 (December 5 2003 – December 10 2008)  Sumitra Singh               January 16 2004 - January 1 2009

13 (December 11 2008 – present)            Deependra Singh Shekhawat      January 2 2009 – present

Saturday 24 March 2012

Culture Of Rajasthan


Rajasthan is culturally rich and has artistic and cultural traditions which reflect the ancient Indian way of life. There is rich and varied folk culture from villages which is often depicted and is symbolic of the state. Highly cultivated classical music and dance with its own distinct style is part of the cultural tradition of Rajasthan. The music is uncomplicated and songs depict day-to-day relationships and chores, more often focused around fetching water from wells or ponds.

The Ghoomar dance from Udaipur and Kalbeliya dance of Jaisalmer have gained international recognition. Folk music is a vital part of Rajasthani culture. Kathputli, Bhopa, Chang, Teratali, Ghindr, Kachchhighori, Tejaji etc. are the examples of the traditional Rajasthani culture. Folk songs are commonly ballads which relate heroic deeds and love stories; and religious or devotional songs known as bhajans and banis (often accompanied by musical instruments like dholak, sitar, sarangi etc.) are also sung.

Rajasthan is known for its traditional, colorful art.wall painting in bundi . The block prints, tie and dye prints, Bagaru prints, Sanganer prints, and Zari embroidery are major export products from Rajasthan. Handicraft items like wooden furniture and handicrafts, carpets, and blue pottery are some of the things commonly found here. Rajasthan is a shoppers' paradise, with beautiful goods found at low prices. Reflecting the colorful Rajasthani culture, Rajasthani clothes have a lot of mirror-work and embroidery. A Rajasthani traditional dress for females comprises an ankle length skirt and a short top, also known as a lehenga or a chaniya choli. A piece of cloth is used to cover the head, both for protection from heat and maintenance of modesty. Rajasthani dresses are usually designed in bright colours like blue, yellow and orange.

The main religious festivals are Deepawali, Holi, Gangaur, Teej, Gogaji, Shri Devnarayan Jayanti, Makar Sankranti and Janmashtami, as the main religion is Hinduism. Rajasthan's desert festival is celebrated with great zest and zeal. This festival is held once a year during winter. Dressed in brilliantly hued costumes, the people of the desert dance and sing haunting ballads of valor, romance and tragedy. There are fairs with snake charmers, puppeteers, acrobats and folk performers. Camels, of course, play a stellar role in this festival.